Wednesday, October 11, 2017

मेरा जीवन का बसंत मा यनु बथों अयूं च (Mera Jeevan Ka Basant Ma Yanu Bathon Ayon cha) "गढ़वाली"


बाटों मा चल्दा-चल्दी उकाव आयूं च,
घनघोर अंध्यारी रातों मा लाइट जाई च,
काश गैणों कु ता सारू होंदु,
पर निर्भागी यूँ बादव लग्यां च,
यनु लगणु जुगनू भी आपणा घौर मा सुनिन्द श्यूं च,
तीस पाणी की च अर देखा त ह्यूं पड्युं च,
भोजन ता मिठु चेन्दी पर करेला बणयूँ च,
जिंदगी का बांटों मा चुप्प खडु हुयूं च,

मेरी जीवन का बसंत मा यनु बथों आयूं च.....













निंद रात मा च आणि, मि तब भि बिजे छौं,
अर दिन-दुपहरी मा सुनिन्द श्यों च,
अब ता बिस्तर भी कांडों कु बणयूं च,
शरीर ता ठीक च जरा बुखार आयूं च,
रोंदू भि नी मि, आंसू अयाँ च,
घाम भि नी अर पसीना बगयूं च,
गिच्चु लाल-पीलु होयु, क्रोध भि ता नी अयूं,
कुजणि फिर भि अपणी बात पर किले अड्यूं च,

मेरा जीवन का बसंत मा यनु बथों आयूं च.....

आशा की जोत मा घाम निराशा कु पड्यू च,
जुन्याली रात भि मिथे औंस बणी च,
जरुरत स्यूणु की च, अर देखा ता साबव अड़यायुं च,
सब ता जागी ग्या, पर क्वी अब भि पड्यूं च,
अर पड़ि-पड़ि के देखा, ता कुम्भकरण बणयूँ च,
स्वेणो मा देखा ता यो-यो हनी सिंग बणयूँ च,
बिना बिजली कु यनु करंट लेग्यू च,
मि सदनी श्यूं च, फिर भि वारंट आयूं च,

मेरा जीवन का बसंत मा यनु बथों अयूं च.....

न शोर च, न खबर च, यनु भि क्या यु समय च,
जन भि च, मेमान च, आवाभगत ता कने च,
आवा जी आवा जी, कुछ हमते भि सिखावा जी,
रामायण महाभारत कु स्वाद जरा चखावा जी,
यु खट्टू-मिट्ठु स्वाद जीवन कु मयालु च,
हँसी ख़ुशी चखी ले दीदा, तभी जीवन प्यारू च,
एक तेरु, एक मेरु ही सहारू संगति च,
कुजणि बिना नयूंत्यां, केगु कब बुलावु आयूं च,

मेरा जीवन का बसंत मा यनु बथों अयूं च.....
                                                   - मस्त पहाड़ी
          .                                        (Mast Pahadi)

No comments:

Post a Comment