Monday, October 30, 2017

अहसास एक दर्द का (Ahsas Ek Dard Ka)


जब भी कभी तुम रोते हो,
आंसुओं की छीटें मुझ पर भी गिरती हैं।
जब मैं छोड़ देता हूँ कुछ कहना,
शुरू तुम ही कर देते हो।
जब में तुम्हें परेशान करूँ,
चिल्ला तुम भी जाते ही हो।
जब मैं सोचूँ क्या चीज है ये,
पहेली बन तुम सामने खड़े हो जाते हो।
अहसास ऐसा कि यार क्या चीज है ये,
कुछ चीजें क्या मुझे कभी भी समझ न आयेंगी।
मैं रोता नहीं हूँ, और शायद कभी रोउ भी ना,
पर दर्द तो मुझे भी होता ही होगा,
संग हमारे नहीं रहना चाहते जो आप,
यही समझूँगा की बदनसीब हूँ मैं।
जो नहीं रहे मेरे ऐसे भाग,
माना कि करुणा और भावों में आप असीमित हैं।
पर हम भी तो कुछ अरमान संजोयें रखें हैं,
याद ये पल मुझे भी रहेगा,
इस दर्द को कोई चाहे कितना भी सहेगा।
पर दर्द से हारा हुआ तो मैं ही अकेला हूँ,
कुछ अरमान थे पलों को ख़ुशी ख़ुशी यादगार बनाने के,
मगर पल यादगार तो हैं, पर खुशी अब खो गयी है।
न जाने किस जगह, किस तरह, किस पल,
मेरी खुशनसीबी खो गई।




                 - मस्त पहाड़ी (Mast Pahadi)

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