Saturday, October 28, 2017

मैं खोजता रहा मगर...(Main Khojta Raha Magar)


मैं खोजता रहा मगर, डगर ना मिली
मिल गये हैं निशां कही,कुछ छाप भी हैं दिख रहे
वो छाप मुझ से कह रहे,देख अब न देर कर
उठा कदम उठा नजर,चलना शुरू कर दे अभी।
मैं फिर भी कह रहा उसे,मजबूर तू मुझे न कर
देख अभी रात है, सुबह का इंतजार कर
चलना सीखा है अभी,थोड़ा तो विश्राम कर
अभी तो समय है,तो समय का इंतजार कर।

सो गया मैं उसी पल,आँखें खुली तो देखा हो गया कल।
अब मैं जब जागा हूँ,पदचिन्हों की तलाश को,
मिल नहीं रहा मुझे कोई चिह्न इस मार्ग पर,
अज्ञान पथिक बना मैं,चल रहा हूँ इस डगर पर,
अब डगर मैं डर भी है,विश्वास भी है छिन रहा,
मंजिल का रास्ता भी तो,अब नहीं दिख रहा।
तभी इस अंधेर पथ पर एक चिंगारी आई,
और उसने मुझे मेरी ही कहानी सुनाई।

चिंगारी बोली देख,दीपक तो मैंने तेरे लिए भी जलाया था,
पर मौका तूने उस वक्त गवाया था।
मिल रहा था सब कुछ हाथ में पर, तूने हाथों को छुपाया था,
फिर भी किरण उम्मीद की,जिन्दा तेरे पास है अभी।
इसी किरण को सूरज बना,चलना शुरू कर से अभी,
इससे केवल तू मंजिल ही नहीं पायेगा,अपितु सम्पूर्ण विश्व भी तेरे गुण गायेगा,
तू भी बाजी हारकर जीतने वाला अर्थात बादशाह कहलायेगा।
                                   - मस्त पहाड़ी
                                   (Mast Pahadi)

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