Monday, October 30, 2017

अहसास एक दर्द का (Ahsas Ek Dard Ka)


जब भी कभी तुम रोते हो,
आंसुओं की छीटें मुझ पर भी गिरती हैं।
जब मैं छोड़ देता हूँ कुछ कहना,
शुरू तुम ही कर देते हो।
जब में तुम्हें परेशान करूँ,
चिल्ला तुम भी जाते ही हो।
जब मैं सोचूँ क्या चीज है ये,
पहेली बन तुम सामने खड़े हो जाते हो।
अहसास ऐसा कि यार क्या चीज है ये,
कुछ चीजें क्या मुझे कभी भी समझ न आयेंगी।
मैं रोता नहीं हूँ, और शायद कभी रोउ भी ना,
पर दर्द तो मुझे भी होता ही होगा,
संग हमारे नहीं रहना चाहते जो आप,
यही समझूँगा की बदनसीब हूँ मैं।
जो नहीं रहे मेरे ऐसे भाग,
माना कि करुणा और भावों में आप असीमित हैं।
पर हम भी तो कुछ अरमान संजोयें रखें हैं,
याद ये पल मुझे भी रहेगा,
इस दर्द को कोई चाहे कितना भी सहेगा।
पर दर्द से हारा हुआ तो मैं ही अकेला हूँ,
कुछ अरमान थे पलों को ख़ुशी ख़ुशी यादगार बनाने के,
मगर पल यादगार तो हैं, पर खुशी अब खो गयी है।
न जाने किस जगह, किस तरह, किस पल,
मेरी खुशनसीबी खो गई।




                 - मस्त पहाड़ी (Mast Pahadi)

Saturday, October 28, 2017

मैं खोजता रहा मगर...(Main Khojta Raha Magar)


मैं खोजता रहा मगर, डगर ना मिली
मिल गये हैं निशां कही,कुछ छाप भी हैं दिख रहे
वो छाप मुझ से कह रहे,देख अब न देर कर
उठा कदम उठा नजर,चलना शुरू कर दे अभी।
मैं फिर भी कह रहा उसे,मजबूर तू मुझे न कर
देख अभी रात है, सुबह का इंतजार कर
चलना सीखा है अभी,थोड़ा तो विश्राम कर
अभी तो समय है,तो समय का इंतजार कर।

सो गया मैं उसी पल,आँखें खुली तो देखा हो गया कल।
अब मैं जब जागा हूँ,पदचिन्हों की तलाश को,
मिल नहीं रहा मुझे कोई चिह्न इस मार्ग पर,
अज्ञान पथिक बना मैं,चल रहा हूँ इस डगर पर,
अब डगर मैं डर भी है,विश्वास भी है छिन रहा,
मंजिल का रास्ता भी तो,अब नहीं दिख रहा।
तभी इस अंधेर पथ पर एक चिंगारी आई,
और उसने मुझे मेरी ही कहानी सुनाई।

चिंगारी बोली देख,दीपक तो मैंने तेरे लिए भी जलाया था,
पर मौका तूने उस वक्त गवाया था।
मिल रहा था सब कुछ हाथ में पर, तूने हाथों को छुपाया था,
फिर भी किरण उम्मीद की,जिन्दा तेरे पास है अभी।
इसी किरण को सूरज बना,चलना शुरू कर से अभी,
इससे केवल तू मंजिल ही नहीं पायेगा,अपितु सम्पूर्ण विश्व भी तेरे गुण गायेगा,
तू भी बाजी हारकर जीतने वाला अर्थात बादशाह कहलायेगा।
                                   - मस्त पहाड़ी
                                   (Mast Pahadi)

Wednesday, October 11, 2017

मेरा जीवन का बसंत मा यनु बथों अयूं च (Mera Jeevan Ka Basant Ma Yanu Bathon Ayon cha) "गढ़वाली"


बाटों मा चल्दा-चल्दी उकाव आयूं च,
घनघोर अंध्यारी रातों मा लाइट जाई च,
काश गैणों कु ता सारू होंदु,
पर निर्भागी यूँ बादव लग्यां च,
यनु लगणु जुगनू भी आपणा घौर मा सुनिन्द श्यूं च,
तीस पाणी की च अर देखा त ह्यूं पड्युं च,
भोजन ता मिठु चेन्दी पर करेला बणयूँ च,
जिंदगी का बांटों मा चुप्प खडु हुयूं च,

मेरी जीवन का बसंत मा यनु बथों आयूं च.....













निंद रात मा च आणि, मि तब भि बिजे छौं,
अर दिन-दुपहरी मा सुनिन्द श्यों च,
अब ता बिस्तर भी कांडों कु बणयूं च,
शरीर ता ठीक च जरा बुखार आयूं च,
रोंदू भि नी मि, आंसू अयाँ च,
घाम भि नी अर पसीना बगयूं च,
गिच्चु लाल-पीलु होयु, क्रोध भि ता नी अयूं,
कुजणि फिर भि अपणी बात पर किले अड्यूं च,

मेरा जीवन का बसंत मा यनु बथों आयूं च.....

आशा की जोत मा घाम निराशा कु पड्यू च,
जुन्याली रात भि मिथे औंस बणी च,
जरुरत स्यूणु की च, अर देखा ता साबव अड़यायुं च,
सब ता जागी ग्या, पर क्वी अब भि पड्यूं च,
अर पड़ि-पड़ि के देखा, ता कुम्भकरण बणयूँ च,
स्वेणो मा देखा ता यो-यो हनी सिंग बणयूँ च,
बिना बिजली कु यनु करंट लेग्यू च,
मि सदनी श्यूं च, फिर भि वारंट आयूं च,

मेरा जीवन का बसंत मा यनु बथों अयूं च.....

न शोर च, न खबर च, यनु भि क्या यु समय च,
जन भि च, मेमान च, आवाभगत ता कने च,
आवा जी आवा जी, कुछ हमते भि सिखावा जी,
रामायण महाभारत कु स्वाद जरा चखावा जी,
यु खट्टू-मिट्ठु स्वाद जीवन कु मयालु च,
हँसी ख़ुशी चखी ले दीदा, तभी जीवन प्यारू च,
एक तेरु, एक मेरु ही सहारू संगति च,
कुजणि बिना नयूंत्यां, केगु कब बुलावु आयूं च,

मेरा जीवन का बसंत मा यनु बथों अयूं च.....
                                                   - मस्त पहाड़ी
          .                                        (Mast Pahadi)

Thursday, October 5, 2017

एक तू ही तो है... ( Ek Tu Hi To Hai...)

एक तू ही तो है....

जो सबकुछ समझता है जीवन में,
ढूढ़ता है मुझको भी मन-मन में,
मुस्ककुरता वो यादों के मंथन में,
गाता वो पंछी के संग-संग में,

एक तू ही तो है....

सुबह की रोशनी के कण-कण में,
व्याप्त है गगन और नभ-जल में,
पावन प्रतिमा जिसकी बसी मन में,
हूँ मैं जिसके सहारे इस जीवन में,

एक तू ही तो है....

ठिकाना जिसका है दिल के डेरों में,
चिड़याँ चहक रही हो मानो बसेरों में,
बसंती बहार जिसके रंगीले बगीचों में,
जो जल की बूँद है कड़ी धूपों में,

एक तू ही तो है....

रंगत-संगत और जो है इफ्तिहार में,
ह्रदय गति और स्वासों की रफ़्तार में,
चलता जिससे ये जीवन है जीवन की गहराई में,
साथ जो दे इस दौर की बेवफाई में

एक तू ही तो है....
                                                 - मस्त पहाड़ी
                                                (Mast Pahadi)

Wednesday, October 4, 2017

भुट्टा: स्वाद और जीवन (Corn: Taste & Life)


अंगारों में सुलगता हुआ, कुछ पीले-कुछ काले दाने जिनका स्वाद लेने के लिए खरीददार एकटक निगाहें गढ़ाए हुए है। भुट्टा जो की एक किसान की मेहनत का फल है और वो मेहनत भी ऐसी कि इसकी गर्मी, नुक्कड़ पर खड़े उस व्यक्त्ति को रोजगार देती है जो की जीवन जीने के संसाधन की तलाश में इधर उधर भटक रहा था। सुलगता हुआ अंगारा और उस में तपता  हुआ भुट्टा निसंदेह ही पहाड़ के संघर्ष की भांति है जहाँ विपरीत परिस्थितियों के बावजूद व्यक्ति स्वयं के अस्तित्व को प्रदर्शित कर एक कीर्तिमान स्थापित कर पाता है।
    खरीददार जब काफी देर तक इस भुट्टे को देखता है तो वह भी इस के अंदर छिपे हुए मर्म को समझ जाता है कि जीवन में तपने के बाद ही कुछ अद्धभुत, अद्वितीय एवं उत्कृष्ट चीज निखर कर सामने आती है। जब वह भुट्टे को नींबू के रस में मिले नमक के साथ जीभ को उसका स्वादन करवाता है तो निसंदेह कुछ पीले, कुछ काले से वे कुरकुरे सेहत से भरपूर दाने, उसके अंतर मन को यह सोचने पर मजबूर कर देते है कि संघर्ष चाहे वह भुट्टे का हो, भुट्टे बेचने वाले व्यक्ति का हो या किसान का, स्वाद हमेशा मीठा ही देते हैं। भुट्टा अपना रंग, जीवन  को त्याग खुद को एक बेहतर और पौष्टिक रूप में प्रदर्शित कर पाता है एवं अपना जीवन सफल बना पाता है।
                                          - मस्त पहाड़ी (Mast Pahadi)

Tuesday, October 3, 2017

गढ़वाली (पहाड़ी) पीड़ा और पलायन (Garhwali)


दर्द भी च, अर पीड़ा भी हुणी च
बात यु बतोण मा, बडी परेसानी भी हुणी च
पहाड़ो कु दुःख क़ु , बल क्वि इलाज़ नी
क्खि नी बल mbbs, न क्वि सर्जन च
अब ता देवता, ही हरयां ये पहाडु कु भलु करयां
एक बात यु भी, उठारीराई....
यु कन पीड़ा च, जेकु नो नेतोन विकाश धरयायी
पलायन, बेरोजगारी अर धकयां द्वार,
यन नी होंदु भुला, विकास
एक दाणी खाणु नी, डालयों का पत्ता लत्ता बणयाँ च
क्वि बते देया उथे, अब ता पत्ता भी नीला चैना छिन
डॉक्टर नी अस्पतालों मा, अर गुरुजी कॉलेजों मा
खोल्यां किले होला योंका, ढांचा दिखोंणु नक्सा मा
रंगस्याट होयु च, रंगिलू पहाड़ मा
गाड़ी दौड़नी बल, गोली की रफ़्तार मा
यरॉआं.. गोली ता हमारी उम्मीदों पर लगी च
जे उड़्यार छै लुकीं विकास की चिंगारी,
तखी बुझी च...
सरकार हमारी यनि, जनु सोकार हमारू च
बैठ्यूं च देयी मा, गदा-मंगरू धौर के
खैर कुछ ता हमारू भी कसूर च,
भूलणा गढ़वाली बोली भाषा, सांप-कितुला की सौर च
कुछ ता सोच नयी होली, नया जमाना का नोन्यालो की
होला जु काम का विकास मा, बसे द् यां रोजगार ते पहाड़ मा
पाणि हवा अर स्वाणी डांडी कांठी, धै लगाणी पहाड मा
अब ता सुण भी ल्यावा जी, घौर बोडी आवा जी
                                                          - मस्त पहाड़ी
                                                      (Mast Pahadi)

Sunday, October 1, 2017

नजराना अब ले भी लीजिये.......(Najrana Ab Le Bhi Leejiye)

धरे हुए हो गया है अरसा, अब ले भी लीजिये
नजराना लाये थे हम, हमें अब माफ़ कीजिये।
हो गयी हो गुस्ताख़ी, तो रहमत कीजिये
हमारी नसही, नज़राने की ही तो, जरा कदर कीजिये।
                                  
                              - मस्त पहाड़ी (Mast Pahadi)